

हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जिसे हर साल महाशिवरात्रि के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त विशेष उपाय और पूजा करते हैं।
यह त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पौरणिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व का सम्बन्ध भक्त प्रह्लाद से है जो कि भगवान विष्णु के परम भक्त थे। प्रह्लाद की बुआ होलिका को आग में न जलने का वरदान था। प्रह्लाद को मारने की नीयत से होलिका उसे ले कर जलती हुई लकड़ियो पर बैठ गई। भगवान विष्णु की कॄपा से होलिका जल गई लेकिन प्रह्लाद बच गया।

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन दुल्हैड़ी का पर्व मनाया जाता है जिसमें रंग, अबीर तथा गुलाल का प्रयोग किया जाता है।होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है।
नव संवतसर प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन से हिन्दु नूतन वर्ष (विक्रम संवत)का प्रारम्भ होता है। इस दिन अपने आराध्य देव एवं देवी की पूजा करनी चाहिये. ईश्वर से वर्ष के सफल होने की प्रार्थना करनी चाहिये।

चैत्र मास की नवमी को रामनवमी भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। भगवान राम विष्णु के दस अवतारों में से एक हैं। इस दिन राम कथा सुनने का विशेष महत्व है।

जब भगवान श्री राम ने पृथ्वी का भार कम करने के लिये अवतार लिया तो भगवान शंकर ने भी उनका साथ देने के लिये श्री हनुमान के रूप में माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया। यह त्यौहार चैत्र मास की चौदस को मनाया जाता है। इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये तथा हनुमान जी के चरणों में प्रणाम कर तिलक लगाना चाहिये।

बैसाख शुक्ल पक्ष त्रितीया को अक्षय त्रितीया मनायी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किये गये पुन्यों का कभी क्षय नहीं होता है। इसलिये इस दिन लक्ष्मी तथा नारायण पूजा का विशेष महत्व है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन गुरुजनों तथा कुलगुरु की पूजा की जाती है। भारत में गुरु का समाज में बहुत महत्व है क्योंकि गुरु इश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। गुरु पूजा के लिये मन्त्र इस प्रकार है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम: ॥

नागपंचमी श्रावण मास की पंचमी को मनायी जाती है। इस दिन नाग देवता के चान्दी, काष्ठ अथवा चित्र स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन काल सर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति शान्ति पूजा करा कर इस दोष के प्रभाव को सीमित करा सकते हैं।

भाई बहन के स्नेह एवं कर्तव्य का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व । इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती हैं और भाई बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सम्पूर्ण भारतवर्ष विषेषत: उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मथुरा में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान विष्णु ने पृथ्वी से पापियों के विनाश के लिये तथा सद जनों के उद्धार के लिये श्री कॄष्ण के रूप में अवतार लिया था। इस दिन उपवास रखा जाता है और भगवान श्री कृष्ण की आराधना की जाती है।

भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन श्री गणेश चतुर्थी मनायी जाती है। इसे विनायक चतुर्थी भी कह्ते हैं। इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को गणेश जी की पूजा करनी चाहिये। ब्रह्मणों को यथोचित दान देना चाहिये। विधिपूर्वक पूजा करने से गणेश जी प्रसन्न होते है और सुख प्रदान करते हैं। इस दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिये। एसी मान्यता है कि इस दिन चन्द्रमा के दर्शन करने से झूठा दोष लग जाता है क्योंकि चन्द्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था।

पित्र पक्ष १५ चन्द्र दिनो का समय होता है जो पूर्वजों को समर्पित है। इन दिनों में श्राद्ध,तर्पण तथा पिन्डदान का विशेष महत्व है। इन दिनों में कौवों को खाना खिलाना पुन्या माना जाता है। घर के सबसे बड़े पुरुष सदस्य को पूरी श्रद्धा तथा समर्पण भाव से शास्त्रोगत कार्य करने चाहिये। इन दिनों में कोइ भी शुभ कार्य जैसे कि “नये भवन में प्रवेश”, नया व्यवसाय प्रारम्भ” तथा”सन्तान जन्म का समारोह” इत्यादि वर्जित हैं।

नवरात्रि दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नौ दिन का समय है। क्वार मास के पहले नौ दिन को नवदुर्गा कह्ते है। इन दिनो में दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। अष्टमी अथवा नवमी के दिन कन्याओं को भोजन कराने का विशेष महत्व है। पूर्वी भारत विशेषत: बंगाल में यह पर्व अत्यंत भव्य तरीके से मनाया जाता है।

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक विजय दशमी का पर्व क्वार मास की दशमी को मनाया जाता है। इसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यतओं के अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर पृथ्वी को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। उत्तर भारत के अनेक स्थानों पर इस दिन रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के पुतले फूंक कर अच्छाई की विजय मनाई जाती है।

दीपवली का पर्व सम्पूर्ण भारत में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। मान्यतओं के अनुसार इस दिन भगवान राम १४ वर्ष का वनवास पूरा कर के अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने उनके लौटने की ख़ुशी में घी के दीपकों की पंक्तियों से अपने घरों को सजाया था। आज भी प्रतीक स्वरूप घर घर दीपक जलाये जाते है। इस दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा की बहुत मान्यता है। माना जाता है कि इस दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा करने से घर धन-धान्य से भरा रह्ता है।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को इंद्र की पूजा न कर के परमपिता परमेश्वर की पूजा करने को कहा। गोकुल वासियों ने परमेश्वर का स्वरूप पूंछा तो श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को परमेश्वर का प्रतीक बताया। अपनी पूजा बन्द होने से नाराज इंद्र ने गोकुल में भयंकर वर्षा की। लोगों को व्याकुल देख कर श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। सारे गोकुल के लोग पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे और गोकुल को इंद्र के प्रकोप से मुक्ति मिल गई।

भैया दूज का पर्व कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है। इसे यमद्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार एक दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुँचे। यमुना ने अपने भाई का बहुत आदर सत्कार किया। यमुना ने यमराज को अपने हाथ से बने हुए पकवान खिलाए। यमुना ने भाई के माथे पर तिलक भी किया। यमराज ने बहन को बहुत सुन्दर उपहार दिया। यमराज ने यमुना के स्नेह से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि जो बहन आज के दिन भाई को तिलक लगायेगी वो तथा उसका भाई यमलोक नहीं जायेगें।
